साहूकार की पूँजी भी होते हैं दलाल

दलाल कथा-02

यादवजी का सुनाया दूसरा किस्सा सुनते-सुनते ही, इन किस्सों को लिखने का खाका मेरे मन में बनने लगा था। किस्से सुनाकर यादवजी ने कहा -‘मैं जानता हूँ। आप ये सब लिखोगे ही लिखोगे। मानोगे नहीं। यह भी जानता हूँ कि आप कोई गड़बड़ नहीं करोगे। फिर भी कह रहा हूँ, ध्यान रखिएगा, रतलाम में लोग खानदानी पेढ़ियाँ लेकर बैठे हैं। फर्मों के नाम भले ही कुछ और हो गए हैं लेकिन परिवार तो वो ही हैं। इसलिए, ऐसा कुछ मत कर दीजिएगा कि किसी का पानी उतर जाए।’ यह बात तो मेरे मन की ही थी। सुनते-सुनते ही तय कर लिया था कि यादवजी भले ही अलग-अलग सेठों/पेढ़ियों के किस्से सुनाएँ, मैं दोनों का काल्पनिक नाम एक-एक ही रखूँगा। बदलूँगा नहीं। पुराने जमाने का कोई आदमी यदि घटनाओं से वास्तविक चरित्रों को पहचान लेगा तो यह मेरा दुर्भाग्य ही होगा। इसलिए यादवजी के सुनाए सारे किस्सों में फकीरचन्दजी ही दलाल रहेंगे और मधुसूदनजी ही सेठ।

यादव साहब का सुनाया दूसरा किस्सा यह था।

फकीरचन्दजी शानदार आदमी थे। बिलकुल नारियल की तरह। बाहर से बहुत कठोर और पत्थरमार बोलनेवाले। लेकिन अन्दर से नरम और मीठे। जो उन्हें नहीं जानते थे, वे डर कर उनसे दूर ही रहते और बात करनी पड़ जाती तो सहम कर, तनिक दूर से ही बात करते। लेकिन जो उन्हें एक बार जान-समझ लेता, वह बार-बार उनके पास जाने के, उनसे बात करने के मौके तलाशता रहता। वे नरम मिजाज आदमी और कठोर मिजाज दलाल थे। दलाली में अपने उसूलों के इतने पक्के कि चौबीस केरेट सोने के गहने घड़ लें और व्यवहार में इतने विनम्र कि हर कोई उन्हें ठगने लायक मान ले। अनुभवी और आदमी के पारखी इतने कि चलते आदमी को देख कर बता दें कि मुकाम पर पहुँचते-पहुँचते यह आदमी क्या करेगा। 

यही फकीरचन्दजी एक शाम, व्यापारी से दस्तखत कराई हुण्डी सौंपने, सेठ मधुसूदनजी की पेढ़ी पर पहुँचे तो एकदम थके-थके, मुरझाये-मुरझाये। सेठजी को चिन्ता हुई। पूछा - ‘क्या बात है फकीरचन्दजी! क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है?’ फकीरचन्दजी बोले - ‘तबीयत को तो कुछ नहीं हुआ लेकिन आज चूक हो गई।’ सेठजी को लगा, फकीरचन्दजी के हाथों कोई आर्थिक नुकसान हो गया है। ढाढस बँधाते हुए बोले - ‘कोई नुकसान हो गया? हो गया हो तो घबराओ मत। धन्धे में ऐसी ऊँच-नीच तो होती रहती है।’ फकीरचन्दजी मरी-मरी आवाज में बोले - ‘अभी, हाथों-हाथ तो कोई नुकसान नहीं हुआ है लेकिन होनेवाला है। अच्छा होगा कि आप मान लो कि जो हुण्डी मैं दस्तखत करवा कर लाया हूँ, उसकी रकम डूब गई।’ 

सेठ मधुसूदनजी को बात समझ में नहीं आई। लेकिन जब फकीरचन्दजी कह रहे हों तो बात बिना समझे ही मान लेनेवाली होती है। बोले - ‘आप कह रहे हो तो मान लिया कि डूब गई। लेकिन बताओ तो सही कि हुआ क्या?’ फकीरचन्दजी बोले - ‘हुआ ये कि जहाँ आपने भेजा था, वहाँ जाने का मन नहीं था। लेकिन आपने कहा, इसलिए गया। उन सेठजी के बारे में अब तक सुना ही सुना था। उनसे व्यवहार नहीं हुआ था। आज आपने उनसे व्यवहार भी करा दिया। लेकिन सेठजी! आगे से आप मुझे वहाँ जाने को मत कहना और मेरी मानो तो आप भी उनसे लेन-देन मत करना।’ सेठ मधुसूदनजी हैरत में पड़ गए। बोले - ‘मेरा भी अब तक उनसे लेन-देन नहीं हुआ। आज पहली बार किया है। लेकिन बताओ तो सही कि आखिर क्या हुआ?’

मानो बात कहने में बहुत तकलीफ हो रही हो, कुछ इस तरह फकीरचन्दजी बोले - ‘उनके लिए जो सुना था, खरा साबित हो गया। आपने छह महीनों के लिए पूँजी दी है। आप अपने ठाकुरजी की आरती में रोज प्रार्थना करना कि छह महीने तक मेरी शंका सही नहीं निकले। निकल गई तो आपकी पूँजी डूबी समझो।’ 

अब मधुसूदनजी का धीरज जवाब दे गया। बोले - ‘साफ-साफ बताओ कि बात क्या है? क्या हो गया जो ऐसा कह रहे हो?’ फकीरचन्दजी बोले - ‘मेरी मति मारी गई थी कि जो सुना उस पर विश्वास करने के लिए उनको आजमा बैठा और रकम उनके हाथ में दी दी।’  सेठ मधुसूदनजी बोले - ‘देते नहीं तो और क्या करते? वह तो देनी ही थी। इसी के वास्ते तो गए थे?’ फकीरचन्दजी बोले - ‘नहीं देता तो भरम बना रहता। लेकिन टूट गया। बुरा हुआ। उन्होंने, रकम लेकर ब्याज की रकम आपकी दी हुई रकम में से ही निकाल कर मुझे दे दी।’ सेठ मधुसूदनजी हैरत से बोले - ‘तो? इसमें गलत क्या किया उन्होंने? ब्याज तो देना ही था। उन्होंने दिया और आपने लिया। इसमें अनोखा क्या हो गया?’ 

अब फकीरचन्दजी ने सार की बात कही। बात क्या कही, साहूकारी का सूत्र बता दिया। बोले - ‘सेठजी! बात ब्याज की रकम देने न देने की नहीं है। साहूकार आदमी, ब्याज से मिलनेवाली रकम पहले अपनी तिजोरी में रखता है और अपनी रोकड़ पेटी में से निकाल कर, गिन कर ब्याज की रकम देता है।’ सेठ मधुसूदनजी को   बात अजीब लगी। बोले - ‘इससे क्या फर्क पड़ता है?’ फकीरचन्दजी तनिक असहज होकर बोले - ‘ताज्जुब है सेठजी! इतनी खास, इतनी बड़ी बात से आपको कोई फरक नहीं पड़ रहा? जो व्यापारी, ब्याज से मिलनेवाली रकम में से ब्याज की रकम गिन कर लौटाता है, उसकी नियत कभी सही नहीं होती। वह तो बाकी रकम को अपनी आमदनी मान लेता है। लेकिन जो व्यापारी रोकड़ पेटी में से निकाल कर ब्याज देता है, उसे यह भुगतान चुभता है। उसे लगता है, ब्याज की यह रकम मेरी पूँजी में से गई है। वह पूँजी हमेशा बचाने की सोचेगा जबकि पहलेवाला तो ऐसी अगली कमाई की राह देखेगा।’ 

सेठ मधुसूदनजी के लिए यह नई बात थी। उन्होंने जिज्ञासा से पूछा - ‘तो आपके कहने का मतलब है कि आज आप जिसे रकम देकर आए हो वो दिवाला निकालेगा?’ फकीरचन्दजी ने मानो अधिकृत घोषणा की - ‘पक्की बात है। वो दिवाला निकालेंगे ही निकालेंगे।’ हक्के-बक्के हो सेठ मधुसूदनजी ने पूछा - ‘ऐसा? कितने दिनों में?’ फकीरचन्दजी बोले - ‘छह महीनों तक रुक जाए तो आपकी तकदीर। नहीं तो मेरे हिसाब से तो उससे पहले ही वो दरी औंधी§ कर देंगे।’ सेठ मधुसूदनजी के लिए यह एकदम नई बात थी। अब उन्हें अपनी रकम की चिन्ता कम और फकीरचन्दजी की बात को आजमाने की जिज्ञासा अधिक हो गई थी।

यह सब सुनाकर यादवजी रुक गए। मैंने उनकी ओर देखा। कोई भाव नहीं। एकदम सपाट चेहरा। यादवजी मुद्राविहीन मुद्रा में। इधर मेरी जिज्ञासा सीधे चरम पर पहुँच गई। मैंने अधीर स्वरों में कहा - ‘रुक क्यों गए? आगे कहिए न? क्या हुआ? फकीरचन्दजी की भविष्यवाणी सच  हुई या झूठ?  उस सेठ ने दिवाला निकाला या नहीं?’ मानो कोई बच्चा, अपने साथी बच्चे को खेल-खेल में दाँव छका कर खुशी के मारे किलकारियाँ मार रहा हो, यादवजी कुछ इसी तरह खिलखिलाए। बोले - ‘उस व्यापारी ने जो किया सो किया, लेकिन आपकी यह हालत देख कर मुझे मजा आ गया।’

समापन करते हुए यादवजी बोले - ‘फकीरचन्दजी की बात सौ टका सही साबित हुई। तीन महीने बीतते न बीतते उस सेठ ने दिवाला निकाल दिया। पूरे बाजार में हल्ला मच गया। ब्याज पर रकम देनेवाले कई लोगों के घर में मातम छा गया।’ लेकिन मेरी जिज्ञासा ज्यों की त्यों थी। मैंने पूछा - ‘और सेठ मधुसूदनजी ने क्या किया? क्या कहा?’ यादवजी ने जवाब दिया - ‘उन्होंने कहा कि उन्होंने तो अपनी रकम उसी दिन डूबी हुई मान ली थी जिस दिन फकीरचन्दजी ने भविष्यवाणी की थी। उन्हें तो इस बात की खुशी थी कि उन्हें फकीरचन्दजी जैसे दलाल मिले।

सेठ मधुसूदनजी ने कहा - ‘ऐसे दलाल तो किसी भी सेठ-साहूकार की पूँजी होते हैं।

यादवजी का सुनाया, अगला किस्सा अगली बार। 
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§      मालवा में मान्यता है कि खुद को दिवालिया घोषित करने के लिए व्यापारी सुबह-सुबह, बाजार खुलते ही, अपनी दुकान की गादी-दरी, दुकान के बाहर खड़े होकर, सरे बाजार झटकने लगता है। यही दिवालिया होने की सार्वजनिक घोषणा होती है। कोई कानूनी कार्रवाई यदि की जानी हो तो वह इसके बाद होती रहती है।) 

5 comments:

  1. It enriched my knowledge about the people & market.

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  2. I have learnt first lesson of lending today.

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  3. इन किस्सों के बहाने कुछ मर्यादित चरित्रों से मुलाकात करवाने का शुक्रिया

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  4. Hamara ghyan badane ka shukriya, hame aise hi blog post ki jarurat he

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  5. Hamara ghyan badane ka shukriya, hame aise hi blog post ki jarurat he

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