सूचना हासिल कर लो तो जानें

शेखरजी के अनुभवों को आधार बनाया जाए तो मानना पड़ेगा कि मध्य प्रदेश सरकार, यदि सूचना के अधिकार अधिनियम और प्रधान मन्त्री मोदी के, डिजिटल इण्डिया के इरादे विफल नहीं कर रही तो इन दोनों को साकार करने को तो बिलकुल ही उत्सुक अनुभव नहीं होती।

शेखरजी ने पेट्रोलियम पदार्थों पर आरोपित विभिन्न करों के ब्यौरे जानने के लिए, वाणिज्यिक कर कार्यालय इन्दौर से दो प्रश्न और गए पाँच वर्षों म्ों पेट्रोलियम पदार्थों के जरिए संग्रहित कर राशि जानने के लिए तीसरे प्रश्न के जरिए, सूचना के अधिकार के अन्तर्गत जानकारी माँगी।

इस हेतु आवेदन शुल्क 10/- रुपयों के पोस्टल आर्डर के साथ अपना आवेदन पंजीकृत-पत्र के रूप में  भेजा जिस पर 22/- रुपये खर्च हुए। जवाब में वाणिज्यिक कर विभाग ने 25/- रुपयों के खर्चवाले पंजीकृत पत्र द्वारा शेखरजी से 10 पन्नों की सूचना के लिए 20/- रुपयों का सूचना शुल्क और जवाब के लिए डाक व्यय भेजने को कहा। सरकार ने यदि ऑन लाइन व्यवस्थाएँ अपनाई होती तो यह खर्च और समय बचाया जा सकता था। शेखरजी ने रजिस्ट्री के 22/- रुपये खर्च कर 20/- रुपयों का पोस्टल आर्डर तो भेज दिया किन्तु डाक व्यय भेजने से यह कह कर इंकार कर दिया कि यह उनकी जिम्मेदारी नहीं है और कहा कि विभाग, वांछित सूचनाएँ शेखरजी को उनके ई-मेल पते पर भेज दे।

विभाग ने 30/- रुपये खर्च कर शेखरजी को सूचनाएँ भेज दीं। ऑन लाइन और डिजिटल व्यवस्था होती तो यहाँ भी डाक डाक खर्च, मँहगा कागज और समय बचाया जा सकता था।  शेखरजी ने उत्सुकता से लिफाफा खोला तो पाया कि विभाग ने पहले दो प्रश्नों की ही जानकारी भेजी और सबसे महत्वपूर्ण सूचना (पेट्रोलियम पदार्थों पर लगाए गए करों से गत पाँच वर्षों में प्राप्त रकम) बतानेवाले तीसरे प्रश्न का उत्तर ही नहीं दिया।

चूँकि प्रथम लोक सूचना अधिकारी अपनी ओर से आवेदन का निपटान कर चुका था इसलिए अपील करने के सिवाय शेखरजी के पास कोई विकल्प नहीं था। सो शेखरजी ने अभी-अभी ही, आवश्यक शुल्क 50/- रुपयों और आवश्यक जानकारियाँ 22 पन्नों में तैयार करवा कर अपनी अपील, अपीलीय अधिकारी को भेजी है और जवाब की प्रतीक्षा कर रहे हैं। 

पहली ही नजर में साफ अनुभव हो जाता है कि पहला लोक सूचना अधिकारी, शेखरजी की चाही गई सूचना देने में देर करना चाहता था। क्योंकि अपीलीय अधिकारी भी जो उत्तर देगा वह प्रथम लोक सूचना अधिकारी से ही हासिल करेगा। सूचना के अधिकार को विफल और  अनुपयोगी साबित करने की इस कोशिश को आप अपनी इच्छा और सुविधा से, जो भी नाम देना चाहें दे सकते हैं।

इस मामले में यह भी महत्वपूर्ण है कि मध्य प्रदेश सरकार ने डिजिटल व्यवस्था अपनाई होती तो भरपूर समय, मानव श्रम, मँहगा कागज और डाक खर्च बचाया जा सकता था। किन्तु यह मामला बताता है कि यह सब बचाना तो दूर, समय पर वांछित सूचनाएँ उपलब्ध न कराने में मध्य प्रदेश सरकार की रुचि अधिक है। इस मामले में अपील करने की स्थिति पैदा करना, इस रुचि का ही प्रत्यक्ष प्रमाण है।

इसके समानान्तर शेखरजी के अनुभवों के आधार पर यह जानकारी महत्वपूर्ण और उत्साहजनक है कि केन्द्र सरकार, राजस्थान सरकार और पंजाब सरकार ऐसी सूचनाएँ ई-मेल पर, डिजिटल स्वरूप में, ऑन लाइन उपलब्ध कराती हैं। केन्द्र सरकार तो ऑफ लाइन भी उपलब्ध करा देती है जबकि पंजाब सरकार ने एक बार 10 पन्नों की सूचना निःशुल्क ही भेज दी।

डिजिटल इण्डिया और सूचना के अधिकार को अपनाने और प्रोत्साहित करने के मामले में मध्य प्रदेश सरकार से जुड़े, शेखरजी के ये दो अनुभव जानकर गालिब का यह शेर, (एक छोटे से घालमेल सहित सहित) लागू होता लगता है -

                                        यह ‘राज्य’ नहीं आसाँ, बस इतना समझ लीजे
                                        इक आग का दरिया है और डूब के जाना है।
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