सुप्रीम कोर्ट को ही तय करने दीजिए


अयोध्या प्रकरण पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्ड पीठ द्वारा दिए गए निर्णय पर बहुत कुछ लिखा जाने के बावजूद लिखा जाना जारी है। और कुछ नहीं तो मेरी यह पोस्ट तो इसका प्रमाण है ही।

निर्णय से अधिसंख्य लोग प्रसन्न भी हैं और सन्तुष्ट भी। अधिकांश लोग इस प्रकरण को यहीं समाप्त कर, इस पर अमल करने के पक्ष में हैं। किन्तु मुझे लगता है कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय ले लेना ही सबके हित में होगा।

इस प्रकरण से सम्बद्ध पक्षों में से कोई भी पक्ष, अपने समुदाय का आधिकारिक और निर्णायक प्रतिनिधित्व नहीं करता। प्रत्येक पक्ष, अपने-अपने समुदाय का आंशिक प्रतिनिधित्व ही करता है।

ऐसे में यदि समझौते की बात कही जा रही है और ऐसा किया गया तो कोई भी समझौता दोनों समुदायों को अन्तिम रूप से कभी भी स्वीकार नहीं होगा। आज समझौता हो जाएगा तो दोनों समुदायों में से, कल उसके विरोध में कोई न कोई खड़ा हो जाएगा। प्रत्येक धड़ा खुद को अपने-अपने समुदाय का प्रतिनिधि कहता है जबकि वास्तविकता में ऐसा है नहीं।

ऐसे में, न्यायालय से बाहर किया गया कोई भी समझौता किसी भी दिन विवादास्पद बन जाएगा। कोई भी कह देगा कि समझौता करनेवाले लोग या पक्ष उसका प्रतिनिधित्व नहीं करते इसलिए समझौता अनुचित और अस्वीकार्य है।

ऐसे में ले-दे कर, सर्वोच्च न्यायालय ही वह संस्थान् है जो सम्वैधानिक आधिकारिकता और सर्व स्वीकार्यता प्राप्त है। सर्वोच्च न्यायालय समूचे देश का प्रतिनिधित्व करता है। दोनों समुदायों का जो भी धड़ा अपने आप को अपने-अपने समुदाय का अधिकृत प्रवक्त कहता/मानता है, वह सर्वोच्च न्यायालय में पक्ष बन कर खड़ा हो सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय क्या होगा-यह कह पाना किसी के भी लिए न तो सम्भव है और न ही उचित। किन्तु उसके निर्णय में पूरा देश समाहित होगा। कोई नहीं कह सकेगा कि उसकी बात नहीं सुनी गई।

इसलिए, देश के हित में यही है कि इस मामले का अन्तिम निपटारा सर्वोच्च न्यायालय ही करे। अच्छी बात यह है कि लखनऊ उच्च न्यायालय के निर्णय से असहमत/असन्तुष्ट, दोनों समुदायों के कुछ धड़े सर्वोच्च न्यायालय में जाने की तैयारी कर रहे हैं।

उन्हें जाने दिया जाना चाहिए।

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2 comments:

  1. आपकी बात सही है परंतु समस्या उन तत्वों से है जो अपने पक्ष के धार्मिक नेताओं के अतिरिक्त न्याय के सभी रूपों के खिलाफ हैं और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भी उसी स्मय मानेंगे जब वह पूर्णतया इनके पक्ष में हो।

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  2. जो भी निर्णय आयेगा, तर्क संगत आयेगा।

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आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.